Sunday 3 April 2016

Anokha Milan

कैसे भुला दू वो लम्हा जो मुझे कर गया कुछ ऊँ प्रभावित,
दीदार उसका सोचने पर मजबूर कर गया की मैं मृत हू या जीवित,
चेहरा उसका मानो खूबसूरती का मज़ार,
और साफ़ दिल दे रहा मानो अपनेपन की गुहार ।

शांत स्वाभाव सवेंदनशील उसके विचार,
दिलों को जो छू जाएँ कुछ ऐसे उसके संचार,
क्या रिश्ता है मेरा उससे जो मैं आज उसके बारे में लिख रहा,
दुनिया में करोड़ों को छोड़ उसकी कशिश में मस्त मगन हो रहा ।

वो बोली न मुझसे कुछ भी, कह कर की आप खुद ही समझ लें,
मैं कोई बड़ी सख्सियत नहीं तो आप मुझे भला क्योँ समझ लें,
ये बात उसकी कर गयी मुझे कुछ उसका दीवाना,
है वो अत्यन्त खुश या अत्यन्त दुखी इस बात का था मुझे पता लगाना ।

वो रही सबसे अकेली और दूर सी दिखी मुझे भीड़ से,
चुपचाप गुमसुम सी रही कुछ सोचती, जैसे हांथी बंधा हो जंजीर से,
उसको समझ मुझे उसकी ताकत को बढ़ाना है,
दिल में उतर उसके उसकी सख्सियत को समझ जाना है ।

नहीं कुछ नामुमकिन अगर हौसलें और इरादे नेक हों,
यहाँ तो बस दिल को समजहना है भले हारने के लम्हे अनेक हों,
पर किसी दिल को उन्ही अकेला मई छोड़ का जा नहीं सकता,
और जब दिल हो इतना प्यारा तो उसे अकेला नहीं छोड़ सकता ।

अरमानों के आरजू को देते हुए पंख,
कोशिश जरी है ताकि भर सकुिं उस खास के जीवन में खुशियों के रंग,
जीवन जी क्रूरताओं को मिटा कुछ बदल दू  उसे कुछ इस कदर,
दुनिया के सामने रहे भले चुप, पर कम से कम हमारे सामने तो मचाए ग़दर

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