कशिश थी ज़माने की दूरिऑन मुझे हिरासत में मिली,
सोचा बहुत की क्या थी गलती जो तन्हाईयाँ मुझे ही मिली,
कई बार किसी की इन्तेहाँ चाहत दूरियां बढ़ा जाती हैं,
कोशिश थी मिलन की मगर ये किस्मत दूरियां दे जाती हैं |
गम इस बात का नहीं की तन्हाई को मैंने है महसूस किया,
मोहब्बत ही की इतनी की हर पल उसे याद किया,
जरुरत उसकी भी ना पड़ी क्योँकि मोहब्बत मेरी निस्वार्थ थी,
जब तक थी उसकी ख़ुशी तब तक ही वो मेरे साथ थी |
पलों को जीने की वकालत तो सभी किया करते हैं,
हर पल लेता है अपना इन्तेहाँ ये कोई भी नहीं कहते हैं,
दिल हो साफ़ और नियत में अगर झलक जाये दीवानगी,
तो ऐसी कोई मंजिल नहीं जो हो न सके हासिल कभी |
खुद की तन्हाई से लड़ के मई हंस तो रहा था,
अपने ग़मों को छुपा के मैं दुनिया को हंसा तो रहा था,
पर वही कम्भख्त पल फिर से इतिहास दोहरा गए,
जो मुझे भुला बैठे थे कम्भख्त उससे वापस भेंट और उसकी याद दिला गए |
दिल को अभी मैंने अपने समझाया ही था,
तमन्ना पाने में अभी देर है ये समझाया ही था,
मगर ये पल का इम्तेहान फिर एक बार इम्तेहान ले गया,
जिसे कर रहा था याद कर भुलाने की कोशिश, उसकी याद फिर से दिला गया |
दुनिया किस मोड़ पे किस से करा जाये मुलाक़ात ये कहना नामुमकिन है,
कभी मिले अनजान तो कभी हमसफ़र मगर सही तरीके से पहचानना मुश्किल है,
क्योँ किसी की याद उसकी मौजूदगी जाता जाती है,
सायद ये उसे पाने की है चाहत जो उसके ठुकरा देने के बाद भी उसकी याद दिला जाती है |
अपनी मंजिल को कभी ना दुनिया के प्रहार से भूलने देना,
अगर ले ये मंजिल परीक्षा तो मुस्कुरा के उसको अपने लड़ने की ताकत की चेतना देना,
कभी भी किसी के चाहने से किसी की हार नहीं होती,
हालातों से अगर खुद मान ली इंसान ने हार तो सब कुछ पा लेने के बाद भी मन की जीत नहीं होती |
सोचा बहुत की क्या थी गलती जो तन्हाईयाँ मुझे ही मिली,
कई बार किसी की इन्तेहाँ चाहत दूरियां बढ़ा जाती हैं,
कोशिश थी मिलन की मगर ये किस्मत दूरियां दे जाती हैं |
गम इस बात का नहीं की तन्हाई को मैंने है महसूस किया,
मोहब्बत ही की इतनी की हर पल उसे याद किया,
जरुरत उसकी भी ना पड़ी क्योँकि मोहब्बत मेरी निस्वार्थ थी,
जब तक थी उसकी ख़ुशी तब तक ही वो मेरे साथ थी |
पलों को जीने की वकालत तो सभी किया करते हैं,
हर पल लेता है अपना इन्तेहाँ ये कोई भी नहीं कहते हैं,
दिल हो साफ़ और नियत में अगर झलक जाये दीवानगी,
तो ऐसी कोई मंजिल नहीं जो हो न सके हासिल कभी |
खुद की तन्हाई से लड़ के मई हंस तो रहा था,
अपने ग़मों को छुपा के मैं दुनिया को हंसा तो रहा था,
पर वही कम्भख्त पल फिर से इतिहास दोहरा गए,
जो मुझे भुला बैठे थे कम्भख्त उससे वापस भेंट और उसकी याद दिला गए |
दिल को अभी मैंने अपने समझाया ही था,
तमन्ना पाने में अभी देर है ये समझाया ही था,
मगर ये पल का इम्तेहान फिर एक बार इम्तेहान ले गया,
जिसे कर रहा था याद कर भुलाने की कोशिश, उसकी याद फिर से दिला गया |
दुनिया किस मोड़ पे किस से करा जाये मुलाक़ात ये कहना नामुमकिन है,
कभी मिले अनजान तो कभी हमसफ़र मगर सही तरीके से पहचानना मुश्किल है,
क्योँ किसी की याद उसकी मौजूदगी जाता जाती है,
सायद ये उसे पाने की है चाहत जो उसके ठुकरा देने के बाद भी उसकी याद दिला जाती है |
अपनी मंजिल को कभी ना दुनिया के प्रहार से भूलने देना,
अगर ले ये मंजिल परीक्षा तो मुस्कुरा के उसको अपने लड़ने की ताकत की चेतना देना,
कभी भी किसी के चाहने से किसी की हार नहीं होती,
हालातों से अगर खुद मान ली इंसान ने हार तो सब कुछ पा लेने के बाद भी मन की जीत नहीं होती |